Monday, February 25, 2013


तुम्हे चाँद बोल कर 
खुश ही हुई थी मैं..
तुम चाँदनी के संग 
चल दिए....

नशा ए फ़ेसबुक 
हम सब पे तारी हैं
उतरता नही जहाँ से 
मार्क बाबू ने की 
ऐसी होशियारी हैं..

पुराने पत्ते जाए तो
 नये आए..
लेकिन 
हम इस पागल दिल को 
कैसे समझाए


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