चाँद
तुम भी कितना धमकाते हो यार
"चाँद" को भी नही छोड़ते
क्या करे बेचारा चाँद...
"चाँदनी" उसे छोड़ती ही नही
आना चाहता है तुम्हारे पास
लेकिन उनकी अठखेलिया
उसे वक़्त ही नही देती
देख सके वो किसी और की और..
कल की ही बात हैं मैने बनाया
नरम गरम हलुवा
चाँद को भी बुलाया
लेकिन बेचारा नही आ पाया
जबकि उसे हलवा कितना पसंद हैं
ये तुम भी जानते हो और मैं भी
हर कोई मज़बूर हैं
मेरी और तुम्हारी तरह....
नही आ सकता मिलने...
चाह कर भी....सोच कर भी
तब भी दुनिया चलती हैं...
हैं ना ..देखो
हम भी तो जी रहे हैं...
"चाँद " के बिना..
साथ के बिना..
10 Comments:
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति | आभार
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
This comment has been removed by the author.
कल २४/०२/२०१३ को आपकी यह पोस्ट Bulletin of Blog पर लिंक की गयी हैं | आपके सुझावों का स्वागत है | धन्यवाद!
khubsurat abhivyakti
latest postमेरे विचार मेरी अनुभूति: मेरी और उनकी बातें
:-)
और नहीं तो क्या...
अनु
भावनात्मक और सुन्दर रचना।
नया लेख :- पुण्यतिथि : पं . अमृतलाल नागर
shukriya Harshvardhan ji...
abhaar Anu ji..
abhaar Kalipad ji...
abhaar Sriram ji..
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