Tuesday, March 12, 2013

मौन ही मौन मे ....






कह भी दिया तो......
कौन सा छोटा हो गया..
प्यार ही तो था...जता दिया...अच्छा किया..
वरना हो सकता हैं 
मौन ही मौन मे ....
सब कुछ कहीं खो जाता ..
बात आगे निकल जाती...
वो वही खड़ा रह जाता..
सोचते हुए कि काश............
कह दिया होता..
मेरे ख़याल से ...
ये झुंझलाहट..... उसकी नही 
उसके पुरुष होने की थी....
जो कभी  झुकना नही चाहता ..
सोचता हैं .........सब समझ जाए ....कोई
बिना समझाए हुए..बात बताए हुए..
लेकिन हर कोई...... उसके जितना....
समझदार कहाँ?

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