जिंदा लाश
जो किया तुमने हम पर उपकार
उसे कैसे चुकाएँगे मेरे यार
लेकिन एक प्रशण यह भी हैं
तुम्हारे उपकार के बोझ तले
हम कैसे जी पाएँगे?
उपकार का बोझ
उतारना भी ज़रूरी हैं
उपकार सहित नही जी पाना
इस दिल की मज़बूरी हैं
कोई तो निकले इसका हल..
वरना जीना सज़ा बन जाएगा
एक मज़बूर की तरह
कैसे जिया जाएगा?
कौन होगा ऐसा जो जिंदा लाश
कहलवाना पसंद कर पाएगा?
2 Comments:
गहन अनुभूति
सुंदर रचना
उत्कृष्ट प्रस्तुति
बधाई
आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
shukriya sir..
jaroor Jyoti ji...ayenge...aur permanent mehmaan bhi banenge
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