कहीं पन्ने बोलने ना लगे..
पीले पड़ते जिंदगी की किताब के पन्ने
ना जाने हमे क्या क्या याद दिलाते हैं..
दे जाते हैं नई जिंदगी..
जब जब भी हाथ आ जाते हैं.....
ना जाने कितनी यादें, कितनी बातें...
साथ बिताए पल
इनके अंदर जिंदा हैं..याद आ जाए गर
वो पल..एक लहर खुशी की छोड़ जाते हैं..
याद हैं..एक बार तुमने कैसे बहाने से मुझे
चुपके से रास्ते से ही..माँ की क़ैद से छुड़ा लिया था...
घूम रहे थे हम बारिश मे बेपरवाह..अपने आप से..
सच कितना मज़ा आया था..भीगने के बाद
वो गर्म गर्म..सूप की चुस्की...अभी तक स्वाद
दिल से गया ही नही...
और वो दीदी की शादी मे..चुपके से...तुम्हारा
मुझे देर तक देखना..नज़रे मिलने पे नज़रे हटा लेना..
सब मुझे अभी भी ज्यूँ का त्युन याद हैं..
ओह ये क्या..किताब के पन्ने तो बोलने लगे..
चलो किताब बंद कर दे..वरना गड़बड़ हो जाएगी..
जो राज़ बंद हैं बरसो से किताब मे.....
सब के सब बाहर आ जाएँगे......
एस ख़तरनाक किताब का बंद रहना ही ठीक हैं..
ज़रा संभाल के....कहीं पन्ने बोलने ना लगे..
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