आओ सखी आओ..मेरे संग आओ..
ना जाने क्या हुआ मुझको...
नयन भर भर आए हैं.........
सुनकर पीड़ा उनके दिल की..
अश्रु नही रुक पाए हैं..........
देखा तुमने क्या जीवन मे...
कोई सुख ना पाया हैं........
बहती हैं बस नीर की नदिया..
कैसे दिन ये आए हैं.........
काश कोई तो होता...
जो तुम्हे हॅसा पाता...
देता तुमको थोड़ा सा सुख....
थोड़ा तो जीवन मे बदलाव लाता
तुमको देख कर
कुंती माता की हैं याद आती...
महाभारत मे जनम जनम तक...
कृष्ण से उसने....
ना कभी खुशिया माँगी...
तुम भी मुझको ...
सीता माता...मीरा...कुंती सी... लगती हो.....
रहती हो डूबी दुख मे....
ना किसी से कुछ भी कहती हो.......
चाहो तो थोड़ा सा दुख...
हमसे भी तुम कह जाओ...
आओ प्रिय आओ...
मेरे संग...तुम भी कुछ गाओ....
लगो हमारे हृदय से तुम...
अपना दुख हल्का कर जाओ...
आओ सखी आओ..मेरे संग आओ..
3 Comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (4-1-2014) "क्यों मौन मानवता" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1482 पर होगी.
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
सादर...!
बहुत सुन्दर !
नया वर्ष २०१४ मंगलमय हो |सुख ,शांति ,स्वास्थ्यकर हो |कल्याणकारी हो |
नई पोस्ट विचित्र प्रकृति
नई पोस्ट नया वर्ष !
khoobsurat rachna ..
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