तेरे सामने बिखरना मुझे अच्छा लगा..
प्यार की मैने अजब की अनुभूति..
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एक सा टेंप्रेचर नही रहता कभी
जब पिघलना होता हैं तो बर्फ सी जम जाती हूँ..
जब जमना होता हैं तो
एक हल्के से एहसास से..पिघल जाती हूँ..
ये तूने क्या किया
मेरा हर एहसास बहा दिया
अब कैसे जी पओगि..
खत के बदले किसे ..आँखो से लगओगि
तेरा टूट कर मुझे चाहना
मुझे बहुत अच्छा लगा..
हर वक़्त आँखो मे मुझे समेटना अच्छा लगा..
तू समेट ले मुझको अपनी आँखो मे...
तेरे सामने बिखरना मुझे अच्छा लगा..
मैं कोई परी या अप्सरा नही..
उतर के आई हूँ तेरे लिए..तेरी जैसी ही हूँ..
तूने जो उठाया मुझे प्यार से तो..मैं धूल
मोती सी बन गई..सज़ा लिया तूने उंगली मे तो..
तेरा प्यार बन गई....
उफ्फ..पागला था ना वो..
समझ नही पाया तेरी बातों को..
तभी कहु..आज महका हुआ सा आलम क्यूँ हैं..
हर तरफ इतनी सुगंध क्यूँ हैं..
शायद प्यार भरे मौसम ने ली हैं अंगड़ाई..
धरती पे चारो ओर बहार हैं खिल आई..
(मुझे भी मिलना हैं बसंत से एक बार फिर से.)
पागलपन नही प्यार हैं ये..दिल से दिल की राह हैं ये
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एक सा टेंप्रेचर नही रहता कभी
जब पिघलना होता हैं तो बर्फ सी जम जाती हूँ..
जब जमना होता हैं तो
एक हल्के से एहसास से..पिघल जाती हूँ..
ये तूने क्या किया
मेरा हर एहसास बहा दिया
अब कैसे जी पओगि..
खत के बदले किसे ..आँखो से लगओगि
तेरा टूट कर मुझे चाहना
मुझे बहुत अच्छा लगा..
हर वक़्त आँखो मे मुझे समेटना अच्छा लगा..
तू समेट ले मुझको अपनी आँखो मे...
तेरे सामने बिखरना मुझे अच्छा लगा..
मैं कोई परी या अप्सरा नही..
उतर के आई हूँ तेरे लिए..तेरी जैसी ही हूँ..
तूने जो उठाया मुझे प्यार से तो..मैं धूल
मोती सी बन गई..सज़ा लिया तूने उंगली मे तो..
तेरा प्यार बन गई....
उफ्फ..पागला था ना वो..
समझ नही पाया तेरी बातों को..
तभी कहु..आज महका हुआ सा आलम क्यूँ हैं..
हर तरफ इतनी सुगंध क्यूँ हैं..
शायद प्यार भरे मौसम ने ली हैं अंगड़ाई..
धरती पे चारो ओर बहार हैं खिल आई..
(मुझे भी मिलना हैं बसंत से एक बार फिर से.)
पागलपन नही प्यार हैं ये..दिल से दिल की राह हैं ये
2 Comments:
बहुत ही सुंदर
:p
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