"मुझे मिस करती हो"
वो सर्द रात...
मेरा रज़ाई मे बैठ कर
तुम्हारे बारे मे सोचना
सोचते सोचते कहीं गुम हो जाना
सामने लॅपटॉप रखा हैं
इंटरनेट भी ऑन हैं...
लेकिन अब मैं वहाँ नही हूँ....
अतीत की यादों मे गुम
दिमाग़ जैसे फ्लॅशबॅक मे चला गया हैं
एक एक सीन आँखो के आगे
तैरते जा रहे हैं...
तस्वीरे गड्डमगद्द होती जा रही
एक के उपर एक...
जैसे यादें नई पुरानी....
कभी कोई याद उपर आ जाती हैं
कभी कोई याद..
आह यादें भी कितनी सुखद होती हैं ना
चाहे वो दुख भरी क्यूँ ना हो
फिर भी बाद मे सोच कर
सुख ही देती हैं....
सब का सब्र से
दुख मे साथ देना
कंधे से कंधा मिलाकर चलना
ये एहसास दिलाना कि तुम
अकेले नही हो...
बाद मे दिल को गर्व दे जाता हैं
पापा का जाना...मेरा अकेले हो जाना
तुम्हारा प्यार से मुझे संभालना...
बताओ क्या कोई भुला सकता हैं
नही ना...एहसान हैं तुम्हारा
जो उस वक़्त तुम मेरे साथ थे...
या ऐसी ही कुछ सुखद यादें...
मेरा आगे पढ़ाई के लिए निर्णय
घरवालो का विरोध.....
तुम्हारा मेरे साथ होना
सच सोचते ही होंठो पे
धन्यवाद की लकीर
खिच जाती हैं......
शायद तुम साथ ना होते तो
आज मैं जो हूँ मजबूत सी
वो ना होती
होती एक नंदी चिड़िया की तरह
जिसे हर वक़्त देखभाल की ज़रूरत होती हैं
या जंगल की बेल की तरह...कहीं भी....
आयाम ले लेती..
लेकिन तुमने मुझे...निर्णय लेना सिखाया
अपनी बात पे अडिग रहना सिखाया
फिर तुम दूर चले गये....
अब पूछते हो...."मुझे मिस करती हो"
नही हैं मेरे पास जवाब कोई
अपने आप से पूछो......
जवाब मिल जाएगा.....
हाँ.....जो जवाब मिले....मुझे भी ज़रूर बताना
इंतज़ार रहेगा तुम्हारे जवाब का..
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