Wednesday, April 22, 2015

पगा हुआ प्रेम

तुम आराम से बैठे
अपना काम कर रहे थे
मैं तुम्हे कनखियो से देखे जा रही थी
कितने प्यारे लग रहे थे तुम
अपने काम मे डूबे
सच समय कितना आगे निकल आया हैं
इतना आगे कि तुम्हारे कनपटी के बॉल उम्र पर
अब अपना रोब जमाने लगे हैं 
आँखो पे टिका चश्मा
तुम्हारे परिपक्व होने की कहानी कह रहा हैं ...
जबकि कल की ही बात थी
हम जब मिले थे
वो भी अपना परिचय
एक लड़ाई  से हुआ था
तब कितना तंग करते थे तुम मुझे
यहाँ तक कि मैं रो ना दूँ
तुम्हारा यही तंग करना
ना जाने कब  दिल मे उतर गया
लगा तुमसे बेहतर साथी तो कोई हो ही नही सकता
बंध  गई तुम्हारे साथ अटूट बंधन में
हमेशा के लिए
आज जब हम दोनो उम्र के एक पड़ाव पे आ चुके हैं 
तो लगता हैं  चाहते और भी बढ़ रही हैं
तुम्हारा दोनों के भविष्य  की चिंता करना  
फंड के लिए आंकलन करना
कभी घबरा कर यह कहना
हम एक साथ यहीं रहेंगे 
बच्चो के पास नहीं जाएँगे
जताता हैं
कितना गहरा प्यार हैं तुम्हारा मुझसे
तुम मुझे ज़रा भी परेशान नही देखना चाहते
अब एहसास होता हैं
क्यूँ ज़रूरी होता हैं उम्र के आख़िरी पड़ाव  पे
एक साथ होना
एक दूसरे का संबल
एक दूसरे का  सहारा  होना
गाड़ी के दो पहिए वो भी संतुलित
शायद यही हैं प्रेम का ठहराव
या
यू कहे पगा हुआ प्रेम

4 Comments:

At April 22, 2015 at 8:09 AM , Blogger nayee dunia said...

अब एहसास होता हैं
क्यूँ ज़रूरी होता हैं उम्र के आख़िरी पड़ाव पे
एक साथ होना
एक दूसरे का संबल
एक दूसरे का सहारा होना
गाड़ी के दो पहिए वो भी संतुलित
शायद यही हैं प्रेम का ठहराव
या
यू कहे पगा हुआ प्रेम......bahut bahut sundar rachna

 
At April 23, 2015 at 5:22 AM , Anonymous Anonymous said...

nice

 
At October 9, 2015 at 4:25 AM , Blogger अपर्णा खरे said...

Upasna di.....Thanks ap ka blog pe is tarah ana mujhe romanchit kar gay...

 
At October 9, 2015 at 4:25 AM , Blogger अपर्णा खरे said...

Thanks... Anonymous

 

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