Tuesday, August 12, 2014

बस इतनी सी गुज़ारिश हैं

अभी अभी तुमसे फोन पे बात हुई..
दिल एक बार फिर उलझ कर रह गया
क्यूँ करते हो ऐसा...क्या मज़ा मिलता हैं तुम्हे..

खुद को परेशiन करने मे...
तुम्हे नही लगता तुम्हारी परेशानी 

औरों को भी 
परेशन करती होगी...
मत दो सज़ा खुद को...

वो भी उस बात की...जो ग़लती तुमने की ही नही....
तुमने तो बस शिद्दत से 

किसी को चाहा था..प्यार किया था...अपना कहा था...
लेकिन जब उसकी किस्मत मे 

तुम्हारा अपनापन हैं ही नही...
तो
तुम क्या कर सकते हो?
कोई क्या कर सकता हैं..

यहाँ तक की......... ईश्वर भी बेबस हो जाता हैं ....कभी कभी...
मेरी मानो..जो हुआ उसे 

सपना समझ कर भूल जाओ..
भूल जाओ वो लम्हे ..
जो मिल कर गुज़ारे थे कभी...

क्यूंकी 
कोई फायदा नही ऐसी यादों का
जो तुम्हे खुश ना रख सके...

बस रूलाती ही रहे...सताती ही रहे......
अपनी इस बेबसी को 

अपनी जिंदगी ना बनाओ .....मेरे दोस्त........
लौट जाओ...आज़ाद कर दो खुद को...अपनी खुशियो की खातिर......
जिंदगी की खातिर....अपनी उस दोस्त की खातिर....
क्यूंकी तुम तो मुश्किलो मे जी रहे हो..
लेकिन तुम्हारी मुश्किल सोच कर ........

वो मार रही हैं... खुद को...अपने आप को...
खुशियो पर तुम्हारा भी हक़ हैं..
जिंदगी बार बार नही मिलती...

खोज लो अपनी खुशिया
लौट जाओ अपनी दुनिया मे...

अपने लोगो मे...अपने आप मे
बस इतनी सी गुज़ारिश हैं...क्या मान सकते हो...
रख सकते हो...मेरी बात का मान...
अब मत तड़पना ....लौट जाना...

0 Comments:

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home