एक सपना जो काश .. ...एक बार ही सही......... सच हो जाता
दिल करता है
ढेर सारी
किताबे लेकर
कहीं पहाड़ो पे
चली जाऊ
जब मन करे
किताबे पढ़ु
जब मन करे
सैर पर निकल जाऊ
पेड़ पौधों से करू
खूब सी बातें
फूलो से खेलु
उनके गहने बनाऊ
नीली चुनरिया
जो फैली है
आसमान तक
उसका ओढु आँचल
धरती का लेह्गा बनाऊ
पढ़ती रहू
जब तक जी करे
रात में
फिर जब नींद आये तो चंदा की रजाई में
छिप सो जाऊ
न हो दिन का ख्याल
न हो रात की बात
क्योंकि
दिन भी अपना
रातें भी अपनी
चलो थोड़े दिन तो कहीं
अपनी मर्जी से बिताऊँ
दुनिया की टिक टिक से दूर
किताबो में
कहीं खो जाऊ
काश
सच हो जाता
ये खवाब हमारा
गुम हो जाना
तुम्हारा
हमें न ढून्ढ पाना
2 Comments:
nice
thanks ..Anonymous
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