Thursday, July 6, 2017

तुम बिन


तुम बिन
क्या आषाढ़
क्या सावन

तुम बिन
रीता मेरा
मन

तुम बिन
भीगी 
मेरी आँखें

तुम बिन
हर पल रोया
मेरा मन

तुम संग
जाने कितनी 
यादें

तुम संग
जैसे हर पल
हो जीवन

जीवन का 
हर घूँट 
अब कडुवा

तुम बिन
जीवन मे
नीरसतापन

तुम बिन
कट रहा है
यू जीवन

जैसे मिली हो 
सज़ा हर दिन
हर पल

सारी खुशियां
आधी अधूरी
तुम संग था
पूर्ण समर्पण

4 Comments:

At July 7, 2017 at 2:43 AM , Blogger डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (07-07-2015) को "शब्दों को मन में उपजाओ" (चर्चा अंक-2660) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

 
At July 7, 2017 at 11:34 PM , Blogger कविता रावत said...

अपनों की दूरी पल-पल अखरती है
बहुत सुन्दर

 
At July 8, 2017 at 3:08 AM , Blogger vandan gupta said...

सुन्दर

 
At July 8, 2017 at 8:02 AM , Blogger Onkar said...

बहुत बढ़िया

 

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