तुम बिन
तुम बिन
क्या आषाढ़
क्या सावन
तुम बिन
रीता मेरा
मन
तुम बिन
भीगी
मेरी आँखें
तुम बिन
हर पल रोया
मेरा मन
तुम संग
जाने कितनी
यादें
तुम संग
जैसे हर पल
हो जीवन
जीवन का
हर घूँट
अब कडुवा
तुम बिन
जीवन मे
नीरसतापन
तुम बिन
कट रहा है
यू जीवन
जैसे मिली हो
सज़ा हर दिन
हर पल
सारी खुशियां
आधी अधूरी
तुम संग था
पूर्ण समर्पण
4 Comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (07-07-2015) को "शब्दों को मन में उपजाओ" (चर्चा अंक-2660) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
अपनों की दूरी पल-पल अखरती है
बहुत सुन्दर
सुन्दर
बहुत बढ़िया
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