Thursday, January 16, 2014

बस एक सन्नाटा सा पसरा हुआ हैं...

आज ...ना दिल की सुनने का मन हैं
ना दिमाग़ की..
बस एक सन्नाटा सा पसरा हुआ हैं...
दिमाग़ पे........दिल पे
मानो ठंड के किसी गहरे गीले कोहरे की तरह..................
जहाँ से कुछ भी साफ नही दिखाई देता....
हाथ को हाथ नही सूझता...
आज दिल किसी बात का
स्ट्रेस नही लेना चाहता......
बस... आराम की मुद्रा मे कुछ सोचना चाहता हैं.........
पता नही क्या....
हो सकता हैं...वो सोच तुम तक जाए...
या कहीं
हमारे इर्द गिर्द ही ठहर जाए
कह नही सकती....क्यूंकी दिमाग़ को..दिल को
सबको आज़ाद कर दिया हैं...
अपनी..सूनसान क़ैद से..
नही चाहती....महसूस करे वो
किसी भी तरह का कोई बंधन..
अब आज़ादी किसे नही पसंद होती हैं...
देखे हमारी ज़द को तोड़कर
ये कहाँ तक विचरण करती हैं
या फिर लौट आती हैं....हमारे पास
जाओ उड़ जाओ
इस खुले आसमान मे... विस्त्रत वितान मे..
आज ....हम भी आज़ाद...वो भी आज़ाद............
हुई ना सच्ची आज़ादी...

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