नूतन सवेरा
निराशा-निराशा-निराशा
चहु ओर छाई गहन निराशा,
क्या निराशा निराशा
चिल्लाने से निराशा सिमट जाएगी?
भगवान के आगोश मे
जाकर कही खो जाएगी?
क्या बार बार हमारे मन को
नही जलाएगी?
अगर हम ऐसा सोचते है तो
ये हमारी बड़ी भूल है,
ऐसा कुछ भी नही होगा……..
हम अपने विचारो से ही
अपने तम को हटाना होगा,
जीवन के भीतर
स्वयम् ही प्रकाश को
फैलाना होगा……
कुछ करने होगे
भीतर मे मजबूत इरादे,
उन इरादो को
अमल मे लाना होगा……..
तभी हटेगा तम का
घनघोर बसेरा…
तभी होगा जीवन मे
नूतन सवेरा……
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