चेतना का प्रवाह
बदलती राहो के मध्य तुम फिर से आ खड़ी हो
भुलाया था जिसको मुश्किल से
आज फिर मॅन के चलचित्र पे सजीव हो चली हो..
भीगी रातो मे फिर ये फरिश्ते
बुलाने लगे हैं
क्यूँ आज फिर से सब आज़माने लगे हैं
दोराहे पे खड़ा हूँ
तुम्हे बुला लू या तुम्हारे पास आउ
सारे अतीत के पन्ने फिर से
फॅड्फाडाने लगे हैं
क्या कहु इसे....
चेतना का प्रवाह
या अतीत की यादें
0 Comments:
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home