Tuesday, August 2, 2011

आसमान के उल्का पिंड..


आसमान के उल्का पिंड..
उनमे दिखता तुम्हारा चेहरा
आज भी दूर कही तुम्हारी
मौजूदगी का एहसास होता हैं
नज़रो के इनकार से क्या होता हैं
दिल तो तुम्हारे आस पास
तुम्हारी ही धुरी पे घूमता हैं
ये फिरकापरस्ती नही...
जिंदगी का सच हैं...
दीवानगी की हद से गुजर जाना
माना फ़ितरत हैं तुम्हारी....
लेकिन मेरी भी तो सोचो.....
कैसे सह पाएँगे इल्ज़ाम दुनिया के
जो हम पे लगाए जाएँगे..............
या तो एक रंग हो जा.....
या फिर रंग जा दुनिया के रंगो मे..
सब तेरे उपर हैं...............

1 Comments:

At August 3, 2012 at 10:09 PM , Anonymous Anonymous said...

hammmmmmmmmmm.....

 

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