बंधन
बंधन तो मन से हुआ करते हैं
बाहर के बंधन कहाँ बाँध सकते है?
कौन बाँध पाया हैं किसी को.....
गर ना चाहे कोई एक दूसरे को
मोह और अपनत्व का जाल
हमारे मन ने ही बुना होता हैं
खुद ही बुन के फँस जाते हैं
चाह कर भी मोह से उपर
उठ नही पाते हैं...........
भ्रम अब और नहीं पालो
जो करना हैं आज ही कर डालो
कल किसने देखा हैं, कल किसने जाना हैं....
खो जाता हैं पल, खोने के बाद पहचाना
तो क्या पहचाना हैं
आकांशाओ का बीज मत बो, आज मे ही रहो
अचंभित हैरान ना हो ...बंधन स्वीकार लो
गर्व से आज ....बंधन को बाँध लो
अपनी खोए लोगो को पहचान लो...........
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