निर्वाण
अगर इतना आसान होता निर्वाण को पाना
तो सब बुद्ध की तरह सारनाथ मे बैठे होते
जिंदगी का मर्म खोजते, ईश्वर चर्चा मे लिप्त रहते
भाग जाते इस दुनिया से, घर से................
मन से, अपने आप से..............................
भूत, भविष्य, वर्तमान की कल्पना मे जीते मरते
विचारो का गमन आसान हैं........
उनपे चर्चा और भी आसान हैं......
लेकिन उनको कार्यान्वित करना टेढ़ी खीर हैं..
खुद को उनपे चलाना..मिर्ची खाने जैसे हैं..
न्यूटन, डार्विन, आइंस्टीन के सिद्धांत..भी
यहाँ मात खाते हैं....बड़े बड़े दार्शनिक भी
यहाँ आ के डर जाते हैं.................
एक बार फिर से विचार करे....
गमन के चक्कर मे ना पड़े..
दुनिया की ज़िम्मेदारी को निभाए..
खुश रहे औरो को भी खुशिया लुटाए..
सीधा सदा सिद्धांत अपनाए.............
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