Tuesday, August 2, 2011

उम्र की कच्ची ज़मीन


उम्र की कच्ची ज़मीन और
अपनो का साथ
साथ मे हो भविष्य की चिंता, 
माने बुज़ुर्गो की बात
जिंदगी बड़े होकर आम सी नही रहती...
खास बन जाया करती हैं....
बचपन हो कठोर तो 
जवानी और बुढ़ापा
आरामदायक बन जाता हैं....
ये सोचने की बात हैं.....


रूठी थी तुमसे.....
क्यूंकी तुम अपने हो..
प्रेम की थी घनी बारिश
जब हम भीगे थे...
चलो अब मान जाते हैं...
तुम मना रहे हो ना..
क्यूँ..........................
मुझे लेने आ रहे हो ना..



रूठने की बारिश नही तो क्या
मानने का मौसम तो होगा
एक बार ले जाओ हमसे
प्यार की छतरी....
कोई तो तुमसे भी कभी रूठा होगा



जिन्दगी हमने जी ही ली थी
तेरे बगैर भी,मगर तेरे आने से
जीना क्या होता है ,जाना था
जीना तो सिखा दिया तूने
अब कहाँ गुम हो गयी हो
मौत क्या होती है,
अब नया सबक सिखा रही हो,


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