तुम्हारी सोच मे मेरा पूरा वज़ूद समाया हैं
तुम्हें लिख सकता तो लिखता....
तुम्हें कह सकता तो कहता......
तुम्हें रच सकता तो रचता......
बस सोचता रहा....
इस सोच में भी पूरे कहां समाए तुम.....
तुम्हारी सोच मे ही..मैं रह सकु
इतना ही सुकून काफ़ी हैं मुझे
तुम लिखो या ना लिखो
मैं तुम्हे समूचा पढ़ सकती हूँ
कहो या ना कहो
पूरा सुन सकती हूँ
रचो ना रचो....गढ़ चुकी हूँ तुम्हे
तुम्हारी सोच मे मेरा पूरा वज़ूद समाया हैं
क्यूंकी दुनिया मे तेरे सिवा मुझे
कोई भी समझ नही पाया हैं...
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