कितने ज़हीन हो तुम
कितने ज़हीन हो तुम
बिल्कुल किसी
दार्शनिक की तरह
तुम्हारे विचारो की बुनावट
तुम्हारे सोचने की अदा
तुम्हारे मन मे लहराता
सोचो का सागर..........
तुम्हारी आँखो मे छिपा
गहन अध्यन...
चेहरे मे छिपा गहरा भाव
जैसे इसी से बनती हो किताबे
तुमने शब्दो को पिरो दिया हो
भाव मे....
तुम्हारी संवेदना आकार ले चुकी हो
सुंदर रचना का...............
जो अब हमारे हाथो मे हैं
1 Comments:
एक सुन्दर रचना ...सच में कितने जहीन हो तुम
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home