Monday, April 9, 2012

कितने ज़हीन हो तुम


कितने ज़हीन हो तुम
बिल्कुल किसी
दार्शनिक की तरह
तुम्हारे विचारो की बुनावट
तुम्हारे सोचने की अदा
तुम्हारे मन मे लहराता
सोचो का सागर..........
तुम्हारी आँखो मे छिपा
गहन अध्यन...
चेहरे मे छिपा गहरा भाव

जैसे इसी से बनती हो किताबे
तुमने शब्दो को पिरो दिया हो
भाव मे....
तुम्हारी संवेदना आकार ले चुकी हो
सुंदर रचना का...............

जो अब हमारे हाथो मे हैं

1 Comments:

At April 9, 2012 at 6:31 AM , Blogger nayee dunia said...

एक सुन्दर रचना ...सच में कितने जहीन हो तुम

 

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