तुम क्या जानो मेरा मांजी ही
यादों का घना जंगल...
जिसमे से कभी कभी
तुम निकल आते हो..
नही देते हो फ़ुर्सत दम लेने की....
शेर की तरह हमे डराते हो..
मैं बेबस चिड़िया की तरह
सहम के रह जाती हूँ..
कभी नन्ही चीटी बन खुद को
धरती मे छिपाती हूँ..
तुम्हारी कड़कती आवाज़ से तो
मैं थर्रा ही जाती हूँ..
बोलो क्या कोई अपने को
इस तरह भी डराता हैं
कभी यादो को भी भूत बनाता हैं
तुम क्या जानो मेरा मांजी ही
मेरे जीने का सबब हैं....
इसमे तुम्हारी खूबसूरत सी तस्वीर हैं..
जो कभी नही हो सकती जुदा
किसी के कहने से..
4 Comments:
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kya hua..
पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब
बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
shukriya Madan ji
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