कल तक सफ़र पे था..आज अपने घर गया..
बुलंदी पे आज जो नज़र आता हैं...
गिरता नही सीधे लुढ़क जाता हैं..
खवाबो से कह दो आज ना आए..
हम सो रहे हैं हमे नींद से ना उठाए..
राह के मुसाफिर राह मे मिले...
साथ चले....बैठे ...जुदा हो गये..
सूरज जो उतर आया तेरे आँगन मे..
अंधेरा भाग जाएगा तेरे जीवन से
करते हो जब किसी को इतना प्यार तो
नाराज़ क्यूँ होते हो..पकड़ के उनकी बाह
पार क्यूँ नही होते हो..
हो पाया हैं भला कौन मुककमल यहाँ..
दुनिया की भीड़ मे सब अधूरे हैं
सब कहते हैं वो मर गया
हम ने कहा..........कल तक सफ़र पे था..आज अपने घर गया..
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