Tuesday, January 8, 2013

लो लौटा रही हूँ तुम्हे तुम्हारे हर्फ..जो अब तक संभाल के रखे थे..


एक पुरानी ज़मीन को खोद के देखा तो  

देखा तुमने उसपे कुछ हर्फ लिखे थे..वो  
तुम्हारे हर्फ बदल चुके थे.... 
किसी की सच्ची मोहब्बत मे.. 
उन्हे उठाया उल्टा पुल्टा तो.. 
एक धुंधला सा नाम नज़र आया... 
शायद मिटने की कगार पे था.. 
थोड़ा सा पोछा उस पे पड़ी धूल को.....  
चमक उठी तुम्हारे प्यार की दास्तान 
जिसे सिर्फ़ अब तुम्हारी ही ज़रूरत थी... 
क्यूँ ..................हैं ना  


1 Comments:

At January 8, 2013 at 5:30 AM , Anonymous Anonymous said...

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