Friday, January 4, 2013



उसकी आँखो मे हैं चेहरा तेरा.. 

बाते रुकी हुई साँसे थमी हुई 
जैसी दिखती हूँ,वैसी नही हूँ 
भीतर से हूँ मासूम बहुत 
बाहर से चहकती रहती हूँ.. 
अबूझ हैं पहेली इसे ना सुलझाना 
वो तो ऐसी ही हैं उसकी बातों मे ना आना 
इस दुनिया मे मैं तुम और...अपना आप हैं. 
ना करो खुद की पहचान..समय बड़ी पहचान हैं 
कोई पुरानी पहचान होगी 
हमे तो बहुत तंग करती हैं 
पहन कर ढेरो कपड़े भी.. 
दिन भर सर्दी सर्दी करते रहते हैं.. 
मौत भी देती हैं सलामी  
जो सच्चा प्यार करते हैं 
हम तो आज भी जानम तुमपे 
पहले सा एतबार करते हैं 
पर्दे से बाहर आओ 
अपनी पहचान बताओ 
अगर तुम वही हो तो 
मेरा दिल ले जाओ... 
वीरानी मे अपनो का ख़याल आता हैं 
जो नही होता पास वो ही बार बार याद आता हैं.. 
क्यूँ सच हैं ना.. 
मेरी दुनिया हैं तंगदस्ती 
मेरी किस्मत मे हैं फाकामस्ती 
सोच ले ऐसी हालत मे मुझसे 
मेरे अपने किनारा करेंगे.. 
घर घर की कहानी हैं ये 
बस तू इसे अपने शब्दो मे कहता गया... 
लब खामोश थे उनपे दुनिया का तमाम पहरा था... 
आँखो मे बसा उसका चेहरा था.. 
लो दिल को भी भा गया अपना रामदेव बाबा 
चाँद को भी चाहिए हंसता हुआ चेहरा.. 
गाते हुए दिन....खूबसूरत तारे..और बहुत कुछ 

2 Comments:

At January 4, 2013 at 5:05 AM , Anonymous Anonymous said...

This comment has been removed by the author.

 
At January 8, 2013 at 2:02 AM , Blogger अपर्णा खरे said...

koi door jakar bhi kaha door jata hain...

 

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