नही बचे हैं मेरे पास शब्द..
नही बचे हैं मेरे पास शब्द..
किसी की चाटुकारिका के लिए..
जीती हूँ मैं अपने ...............और ......अपने आदर्शो के लिए
क्यूँ झुका लूँ सर किसी ऐरे गैरे के आगे..
अपनी भी तो कुछ इज़्ज़त हुआ करती हैं..
कभी नही सीखा..किसी की हां मे हां मिलना
जो लगा सच्चा..उसी को दिया..साथ अपना..
क्यूँ करू अपनी आत्मा का दम घुटाना..
नही बन ना मुझे किसी की नज़रो मे अच्छा..
भले पड़े मुझे कोई भी कीमत चुकाना..
आप ही कहे दोस्तो...क्या मैं सही हूँ...
अपनी नज़रो मे....खुदा की नज़रो मे...
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