अब उसे मेरा इंतज़ार नही रहता
दुनिया की तमाम बातों से थक कर
जब आ कर सोफे पे पसरी तो...
याद ही ना रहा
कब आँख लग गई...
शायद सुबह से उलझनो मे
इतनी उलझी थी की बस
अपना ध्यान ही ना रख सकी..
आँख खुली तो हल्की हल्की भूख महसूस हुई..
अब मुझमे इतनी हिम्मत ना बची थी की
रसोई तक जाकर...कुछ निकाल लाती...
अपने लिए...निढाल सा शरीर
यू ही पड़ा रहा सोफे पे
अब धीरे धीरे सोच मुझ पर हावी
होती जा रही थी....
लगा खुद ही तो मैने लात मार दी
अपने सुखो पर..
सब कुछ तो था...जो नही था.....
वो सब भी आ रहा था जिंदगी मे
मगर क्यूँ?
क्यूँ किया मैने ऐसा...शायद समय की माँग..
या फिर सूना जीवन जीने की दरकार..
नही नही...ये तो कोई स्त्री
सपने मे भी नही सोच सकती
फिर क्या था ये...
सुख आया पैरों मे बैठा...
कुछ अच्छा समय साथ भी बिताया...
साथ चलने का वादा भी दे गया..
फिर मैने क्यू छोड़ दिया उसका हाथ..
क्यूँ नही निभाया उसका साथ...
अंदर कहीं कुछ रुका हुआ था....
जो बाहर आना चाह रहा था...
प्रवाह की तरह बहना चाह रहा था...
फिर...अचानक..जैसे होश आ गया हो खुद को
नही देना चाह रही थी जवाब...
क्यूँ लौटाया मैने उसे..
जबकि वो हो सकता था अपना
हमेशा के लिए....
लेकिन अब वो जा चुका हैं..
हमेशा के लिए मुझे छोड़ कर
शायद अब भी बाकी हो उसके भीतर
कोई आक्रोश, विषाद की रेखा..
या लौटा देने का दुख..पता नही
लेकिन...अब उसे मेरा इंतज़ार नही रहता..
जब आ कर सोफे पे पसरी तो...
याद ही ना रहा
कब आँख लग गई...
शायद सुबह से उलझनो मे
इतनी उलझी थी की बस
अपना ध्यान ही ना रख सकी..
आँख खुली तो हल्की हल्की भूख महसूस हुई..
अब मुझमे इतनी हिम्मत ना बची थी की
रसोई तक जाकर...कुछ निकाल लाती...
अपने लिए...निढाल सा शरीर
यू ही पड़ा रहा सोफे पे
अब धीरे धीरे सोच मुझ पर हावी
होती जा रही थी....
लगा खुद ही तो मैने लात मार दी
अपने सुखो पर..
सब कुछ तो था...जो नही था.....
वो सब भी आ रहा था जिंदगी मे
मगर क्यूँ?
क्यूँ किया मैने ऐसा...शायद समय की माँग..
या फिर सूना जीवन जीने की दरकार..
नही नही...ये तो कोई स्त्री
सपने मे भी नही सोच सकती
फिर क्या था ये...
सुख आया पैरों मे बैठा...
कुछ अच्छा समय साथ भी बिताया...
साथ चलने का वादा भी दे गया..
फिर मैने क्यू छोड़ दिया उसका हाथ..
क्यूँ नही निभाया उसका साथ...
अंदर कहीं कुछ रुका हुआ था....
जो बाहर आना चाह रहा था...
प्रवाह की तरह बहना चाह रहा था...
फिर...अचानक..जैसे होश आ गया हो खुद को
नही देना चाह रही थी जवाब...
क्यूँ लौटाया मैने उसे..
जबकि वो हो सकता था अपना
हमेशा के लिए....
लेकिन अब वो जा चुका हैं..
हमेशा के लिए मुझे छोड़ कर
शायद अब भी बाकी हो उसके भीतर
कोई आक्रोश, विषाद की रेखा..
या लौटा देने का दुख..पता नही
लेकिन...अब उसे मेरा इंतज़ार नही रहता..
1 Comments:
बेहतरीन...
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