मुझे गर्मियो की छुट्टी का इंतज़ार हैं..
आज कुछ नही
समझ आ रहा
क्या लिखू तुम्हे...
दिमाग़ खाली खाली सा हो गया हैं..
जैसे गर्मी के दिनो मे
पंखा नाममात्र को घूमता हैं
उस नीरवता भरे
वातावरण मे
तब या तो अपनी
सांसो की आवाज़ सुनाई देती हैं
या फिर पंखे की घूर्र घूर्र
सुनो..
तुम तलाश करते हो...
सब मे जीवन
तितली के जैसा....
बचपन मे भी
हम बैठे रहते थे...
इसी इंतेज़ार मे की
कब इल्ली से प्यूपा बने
प्यूपा से तितली...कहते हैं तितली का
अपना कोई रंग नहीं होता
जिस फूल पे बैठती हैं
वही रंग ले लेती हैं
हम औरते भी तो ऐसी ही हैं
तितली की तरह
जिस फूल पे बैठी
वही रंग ले लेती हैं
उम्र वही बिता देती हैं
निस्वार्थ भाव से
बिना कुछ इच्छा किये
छोडो बड़ी बड़ी बाते
अभी भी बच्चे ही बने रहते हैं
सच
कितना वक़्त लगता था...न
पूरी प्रक्रिया मे...
फिर भी हम नही थकते थे
छोटे छोटे घुटनो के बल
बैठे रहते थे पूरा दिन..
घर वालो से छिप कर
जबकि गर्मियो की छुट्टी मे
मम्मी हमे अपने बगल मे
सुला लेती थी..
लेकिन उनकी आँख लगते ही हम
दरवाजा खोल कर चुपके से बाहर
बिना कोई आवाज़ किए
बगीचे मे...सच क्या दिन थे ना..
आज जीवन बचा ही कहाँ हैं..
तुम अपनी नौकरी मे.....
मैं अपनी घर की चाकरी मे...
ना तुम्हे फ़ुर्सत ना मुझे..
फिर भी मन हैं
बार बार जुड़ जाता हैं
पुरानी यादों से..
पुरानी बातों से
सुनो
अपना ख़याल रखना..
अबकी गर्मियो मे शायद..
हम फिर मिले...
अपने बच्चो के साथ..
कुछ पुराना
तलाश करते हुए..
कुछ अपना सा
तलाश करते हुए..
मुझे गर्मियो की
छुट्टी का इंतज़ार हैं..
समझ आ रहा
क्या लिखू तुम्हे...
दिमाग़ खाली खाली सा हो गया हैं..
जैसे गर्मी के दिनो मे
पंखा नाममात्र को घूमता हैं
उस नीरवता भरे
वातावरण मे
तब या तो अपनी
सांसो की आवाज़ सुनाई देती हैं
या फिर पंखे की घूर्र घूर्र
सुनो..
तुम तलाश करते हो...
सब मे जीवन
तितली के जैसा....
बचपन मे भी
हम बैठे रहते थे...
इसी इंतेज़ार मे की
कब इल्ली से प्यूपा बने
प्यूपा से तितली...कहते हैं तितली का
अपना कोई रंग नहीं होता
जिस फूल पे बैठती हैं
वही रंग ले लेती हैं
हम औरते भी तो ऐसी ही हैं
तितली की तरह
जिस फूल पे बैठी
वही रंग ले लेती हैं
उम्र वही बिता देती हैं
निस्वार्थ भाव से
बिना कुछ इच्छा किये
छोडो बड़ी बड़ी बाते
अभी भी बच्चे ही बने रहते हैं
सच
कितना वक़्त लगता था...न
पूरी प्रक्रिया मे...
फिर भी हम नही थकते थे
छोटे छोटे घुटनो के बल
बैठे रहते थे पूरा दिन..
घर वालो से छिप कर
जबकि गर्मियो की छुट्टी मे
मम्मी हमे अपने बगल मे
सुला लेती थी..
लेकिन उनकी आँख लगते ही हम
दरवाजा खोल कर चुपके से बाहर
बिना कोई आवाज़ किए
बगीचे मे...सच क्या दिन थे ना..
आज जीवन बचा ही कहाँ हैं..
तुम अपनी नौकरी मे.....
मैं अपनी घर की चाकरी मे...
ना तुम्हे फ़ुर्सत ना मुझे..
फिर भी मन हैं
बार बार जुड़ जाता हैं
पुरानी यादों से..
पुरानी बातों से
सुनो
अपना ख़याल रखना..
अबकी गर्मियो मे शायद..
हम फिर मिले...
अपने बच्चो के साथ..
कुछ पुराना
तलाश करते हुए..
कुछ अपना सा
तलाश करते हुए..
मुझे गर्मियो की
छुट्टी का इंतज़ार हैं..
1 Comments:
kuchh talash karte huye apna sa ........garmiyon ki chhuttiyon me .........sundar lekhan .....kuchh lamhe bachpan me beet gye ho jaise .....nice
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