Eid Mubarak
कितनी लज़्जत हैं
तुम्हारी बातों मे..
कितना अपनापन है..
तुम्हारे होने मात्र मे
कहाँ से लाते हो
इतनी मोहब्बत मेरे दोस्त?
पलक झपकते ही सबको
अपना बना लेते हो...
इतनी मिठास हैं तुम्हारी बातों मे क्या कहूँ?
काजू किस्मिश और खजूर पड़ी
सेवई का जायका भी
बस फीका पड़ जाता हैं
तुम्हारी मीठी स्वीट सी
बातों के सामने..
अब लगता हैं हर साल शायद
इसी लिए आती हैं ये ईद
तुम एक बार फिर मिल सको..
लगा सको गले..
भूले बिसरे दोस्तो को
लगा सको ज़ोर ज़ोर से हँसी के ठाहके
वही रौनके...
मिलन के गीत गा सको..
एक बार फिर वही
सब कुछ पुराना....
नया करके...सबको बता सको..
ये बेलौस मोहब्बत मेरी नही..
तुम्हारा ही अक्स हैं..
जो झाँकता रहता हैं
प्रतिविम्बित होता रहता हैं..
वक़्त बेवक़्त..मेरे भीतर
जाने दो...ये सब
कहने की बातें नही होती..
ना ही जताई जा सकती हैं ...
बस तुम यू ही
बनाते रहो नये नये घर..
सबके दिलों मे...
क्यूंकी
कॉंक्रीट के घर तो फिर भी
कभी ना कभी खो सकते हैं...
लेकिन "मका ए दिल"
कभी मिटा नही करते...
गुम नही हुआ करते....
आबाद रहो मेरे दोस्त...
यू ही खुश रहो..
तुम तो जानते हो !!!!!
प्यार माँगने से नही...
बाँटने से बढ़ता हैं...
1 Comments:
लाजवाब...
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