सोच की सीढ़ी से जो नीचे उतरे
दूर तक उड़ता हुआ पंछी
आकाश को निहारता रहा
नदिया शायद आज बुला ले मुझको
जिंदगी गम देती है
किसने कहा तुमसे
मैंने तो मौत का जश्न मनाते देखा है उसे
मौत आती है सबके पास
जिंदगी जाती है होकर खास
बस अंतर इतना है एक में टीस बहुत है दुसरे में अपनापन
जिंदगी में लाने पड़ते है त्यौहार
मौत तो खुद ही जश्न होती है
कौन सोयेगा भूखा
किसको मिलेगी रोटी
उनके कर्म करेंगे
उपरवाले के यहाँ बेईमानी नहीं होती
आज अखबार अधजला सा मिला
शायद आग लगी किसी फैक्ट्री में
सिसकियो से भीग गया होगा किसी का आँचल भी आज
कहीं आग लगी
कहीं बेम फूटे
बच्चों को लगा दीवाली आई
किसी की किस्मत फूटी
किसी ने यु ही बेचारगी में जान गवाई
मौत से मिलने को उसके घर जाना होगा
पशोपेश में हूँ बिन बुलाये किसी के घर जो नहीं जाते
इस बजट में हो जायेगा सब महगा
मुझे रौशनी की दरकार है
कुछ पल तो उजालो में जी लू
वक़्त के साथ ज़माने को बदलते देखा
सुना है तुम भी बदल गए हो बहुत
मौसम का तकाज़ा है ये या
ज़माने से कदम मिला कर चलने की ख्वाहिश
मेरी बातों से लाल हुआ करते थे तबसुम जिनके
आज वो तबाही का मंजर लिये बैठे है
कही कोई मिसाइल तो नहीं चली दुनिया के किसी कोने में
एक वक़्त था भजन से नींद खुला करती थी
रात होती थी मंत्रो से
अब तो बस व्हाट्सएप्प से ही नींद खुला करती है
सुना है मुआ इंटरनेट जवान जो हुआ
अबकी मिले तो जम कर शिकायत करेंगे एक दूजे से
रोज का मिलना जो हो पाता तुमसे
तुम्हे भी तो पता चले पानी जब उबाल में होता है तो कितना गर्म होता है
एक कोने में बैठा चाँद रात भर सोचता रहा
तुम खूबसूरत हो या वो
नतीजे में शर्मा कर भाग गया वो
सूरज निकलने से पहले
तमाम मंसूबे बांधे थे तुमसे मिलने से पहले
मिले तो गोया कुछ याद ही न रहा
लगा इम्तेहान का परचा देखते ही दिमाग की बत्ती गुल हो गई हो जैसे
2 Comments:
सुन्दर कविता
Hausala Badhae ka Shukriya Mukesh Ji....tahe dil se abhaar
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home