पिया मैं हार चली
किया था वादा
सदा साथ
चलने का
लिए थे
सात फेरे
अग्नि के समक्ष
खाई थी कस्मे
नहीं छोड़ेंगे
एक दूजे का हाथ
लेकिन ये क्या
टूट गई कस्मे
नहीं रहा
अग्नि का वास्ता
सिन्दूर
चूड़ी
बिछिया
मंगलसूत्र
सब पीछे छूट गए
नहीं निभा सकी अपना वादा
निकल गई
पिया की जद से दूर
ढीले करके सारे बंधन
दुनिया को करके आश्चर्यचकित
क्या करती
हार जो गई थी
लड़ते लड़ते
थक गई थी
ये टूटन
उसे फिर से
जोड़ न सकी
सांसो के शोर ने
उसे हरा दिया
जिस्म के जोर ने
उसे थका दिया
डॉ भी शायद
हार गए
ईश्वर की मंशा के आगे
ठगे से खड़े रह गए
पंछी उड़ गया
छोड़ गया
पिंजरा ख़ाली
अब पुकारो मुझे
मैं नहीं आने वाली
जबकि
वो जाना ही
नहीं चाहती थी
सबको छोड़ कर
अपनों को रुला कर
सबसे बिछड़ कर
लेकिन
नियति को यही मंजूर था कि वो
नया चोला पहने
दर्द से परे
एक नए जिस्म में प्रवेश करे
फिर से भरे
किलकारीया
खेले नए
माता पिता की गोद में
फिर से चुनाव करे
दुनिया की अच्छी चीजो का
बस खुश रहे
हँसती रहे
लेती रहे उड़ान
तुम्हे मेरी भी दुआएं लगे
1 Comments:
marmik,,,sadar,,,,:(
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