Monday, October 26, 2015

पिया मैं हार चली


किया था वादा 
सदा साथ 
चलने का
लिए थे 
सात फेरे
अग्नि के समक्ष
खाई थी कस्मे
नहीं छोड़ेंगे 
एक दूजे का हाथ
लेकिन ये क्या
टूट गई कस्मे
नहीं रहा 
अग्नि का वास्ता
सिन्दूर 
चूड़ी 
बिछिया
मंगलसूत्र
सब पीछे छूट गए
नहीं निभा सकी अपना वादा
निकल गई 
पिया की जद से दूर
ढीले करके सारे बंधन
दुनिया को करके आश्चर्यचकित
क्या करती
हार जो गई थी 
लड़ते लड़ते
थक गई थी
ये टूटन 
उसे फिर से
जोड़ न सकी
सांसो के शोर ने 
उसे हरा दिया
जिस्म के जोर ने 
उसे थका दिया
डॉ भी शायद 
हार गए
ईश्वर की मंशा के आगे
ठगे से खड़े रह गए
पंछी उड़ गया 
छोड़ गया 
पिंजरा ख़ाली
अब पुकारो मुझे
मैं नहीं आने वाली
जबकि 
वो जाना ही 
नहीं चाहती थी
सबको छोड़ कर
अपनों को रुला कर
सबसे बिछड़ कर
लेकिन 
नियति को यही मंजूर था कि वो
नया चोला पहने
दर्द से परे 
एक नए जिस्म में प्रवेश करे
फिर से भरे 
किलकारीया
खेले नए 
माता पिता की गोद में
फिर से चुनाव करे 
दुनिया की अच्छी चीजो का
बस खुश रहे 
हँसती रहे
लेती रहे उड़ान
तुम्हे मेरी भी दुआएं लगे

1 Comments:

At October 29, 2015 at 6:30 AM , Anonymous Anonymous said...

marmik,,,sadar,,,,:(

 

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home