Thursday, July 14, 2016

सुबह की राम राम

सुबह की राम राम
शाम तक काम ही काम
कुछ उलझने
कुछ सुलझने
यही है शायद
जिंदगी तुम्हारा नाम

बेबसी कहीं
कहीं है बेताबियाँ
कहीं है यादों की झलक
कहीं इंतज़ार की घड़ियाँ
करते रहेंगे 
तुमसे ही प्यार
जिंदगी तुम्हे
सुबह का राम राम

देखों न सूरज
आज कुछ नया लाएगा
चमकेंगे सबके उदास चेहरे
कुछ तो मन खिलखिलायेगा
होगी जो ख्वाहिशें
पूरी करना तुम
करना अच्छे काम
ऐ जिंदगी तुम्हे
सुबह की राम राम

3 Comments:

At July 15, 2016 at 12:19 AM , Blogger डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (16-07-2016) को "धरती पर हरियाली छाई" (चर्चा अंक-2405) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

 
At July 15, 2016 at 10:25 PM , Blogger प्रतुल वशिष्ठ said...

आजकल सहज काव्य बहुत कम पढ़ने को मिलता है। ज़िन्दगी के प्रति सकारात्मक भाव जगाती इस कविता की सृजक को अत्यंत शांत मन से 'रामराम' कर रहा हूँ। साधुवाद!

 
At July 16, 2016 at 7:13 AM , Blogger Onkar said...

सरल शब्दों में सुन्दर रचना

 

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