सुबह की राम राम
सुबह की राम राम
शाम तक काम ही काम
कुछ उलझने
कुछ सुलझने
यही है शायद
जिंदगी तुम्हारा नाम
बेबसी कहीं
कहीं है बेताबियाँ
कहीं है यादों की झलक
कहीं इंतज़ार की घड़ियाँ
करते रहेंगे
तुमसे ही प्यार
जिंदगी तुम्हे
सुबह का राम राम
देखों न सूरज
आज कुछ नया लाएगा
चमकेंगे सबके उदास चेहरे
कुछ तो मन खिलखिलायेगा
होगी जो ख्वाहिशें
पूरी करना तुम
करना अच्छे काम
ऐ जिंदगी तुम्हे
सुबह की राम राम
शाम तक काम ही काम
कुछ उलझने
कुछ सुलझने
यही है शायद
जिंदगी तुम्हारा नाम
बेबसी कहीं
कहीं है बेताबियाँ
कहीं है यादों की झलक
कहीं इंतज़ार की घड़ियाँ
करते रहेंगे
तुमसे ही प्यार
जिंदगी तुम्हे
सुबह का राम राम
देखों न सूरज
आज कुछ नया लाएगा
चमकेंगे सबके उदास चेहरे
कुछ तो मन खिलखिलायेगा
होगी जो ख्वाहिशें
पूरी करना तुम
करना अच्छे काम
ऐ जिंदगी तुम्हे
सुबह की राम राम
3 Comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (16-07-2016) को "धरती पर हरियाली छाई" (चर्चा अंक-2405) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आजकल सहज काव्य बहुत कम पढ़ने को मिलता है। ज़िन्दगी के प्रति सकारात्मक भाव जगाती इस कविता की सृजक को अत्यंत शांत मन से 'रामराम' कर रहा हूँ। साधुवाद!
सरल शब्दों में सुन्दर रचना
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