Wednesday, September 11, 2013

सच आज एक हाथ मे बंदूक एक मे तलवार की ज़रूरत हैं..


लो हो गया फ़ैसला की वो अपराधी हैं...
लेकिन मैं नही मानती..उसे अपराधी...
क्यूंकी अपराध तो इंसान किया करते हैं
ये तो इंसान कहने लायक भी नही हैं..
दरिंदे हैं वो...हवस का भूखे....हत्यारे..
जिसका खून पानी हो चुका हैं..
ज़रा सा भी मानवता नही बची होगी...
जब उस मासूम के साथ ऐसा ..
घिनौना कृत्य किया होगा....
ज़रा सा भी नही पिघला होगा इनका दिल
उस मासूम की चीखो से....
इस पर भी नही भरा दिल तो........
हत्या की ठान ली.....फेक दिया बीच सड़क पे
मरने की खातिर....अब इन्हे सज़ा देकर ..
वो मासूम तो नही लौट आएँगी.....
लेकिन जो लूट गई सारे राह
मासूम की अस्मत......शायद उसकी रूह
जन्नत मे कुछ सुकून पाएगी.....
लेकीं मुझे पता हैं इन हत्यारो के लिए
ये सज़ा नही...रिहाई हैं...
अपने जिस्म से...अपने पाप से...
उम्र भर की ज़िल्लत से...
सज़ा तो वो हैं जिसमे ये तिल तिल करके मरे...
हर वक़्त इनको ये एहसास रहे...
उस मासूम के साथ मैने ये
क्यूँ किया..क्यूँ किया क्यूँ किया..

3 Comments:

At September 11, 2013 at 7:01 AM , Anonymous Anonymous said...

nice...

 
At September 11, 2013 at 9:54 AM , Blogger राजीव कुमार झा said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी
पोस्ट हिंदी
ब्लॉगर्स चौपाल
में शामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल
{बृहस्पतिवार}
12/09/2013
को क्या बतलाऊँ अपना
परिचय ..... - हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल - अंकः004
पर लिंक की गयी है ,
ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें. कृपया आप भी पधारें, आपके
विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें. सादर ....राजीव कुमार झा

 
At September 15, 2013 at 12:25 AM , Blogger दिगम्बर नासवा said...

मन के झंझावात को सटीक शब्द दिए हैं ...

 

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