आप अपना आप हो..
जब भी मिलती हूँ आपसे…
बस यही सोचती हूँ..
आप कौन है??
आप मेरे जैसे तो
नही है..
फिर भी क्यूँ
मेरे जैसे लगते है?
मेरे जैसा सोचते है ..
मेरे जैसी बाते करते है..
मेरी खामोशी को
ज़ुबान देकर..
मेरी बाते कहते है..
आप कौन है??
आप दिल की गहराई मे
उतर आए है…
दिल मे छिपे उदासी के
मोती ढूँढ लाए है..
अब पलको के साए मे..
हर पल आप ही रहते है..
लेकिन
आज आपके सामने
बैठकर..
आपको छूकर…
दिल को
ये महसूस हुआ है..
आप अपना आप हो..
आप एक आईना हो..
जिसमे मेरा ही अक्स
मुझे दिखता है…
मेरे परम प्रिय गुरु दादा जी और मीरा दीदी को समर्पित..........
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