Thursday, June 23, 2011

देख तेरी चतुराई…भगवान को भी हँसी आई..


देख तेरी चतुराई…भगवान
को भी हँसी आई..
उसकी बगिया से फूल उठा कर,
उसकी नदिया से पानी लाकर,
उसी को चढ़ाता है, 
नहलाता है..
और बदले मे
पुण्य का अश्विर्वाद चाहता है..
क्या भगवान को 
समझ  नही  आता है..
वो तो तेरी हर अदा पे
मंद मंद मुस्काता है…
पर तुझे लगता है
तेरे एक लड्डू पे
भगवान रीझ जाएगा..
बदले मे 
जो तेरे पास नही है 
सब दे जाएगा..
मूर्ख जो सारी दुनिया को चलाता है..
वो क्या तेरी मनसा 
नही समझ पाता है..
जब तू एक लड्डू पे नही रीझता..
तो वो कैसे रीझेगा..
जब तू 
छोटी छोटी बातो पे खीजता है…
तो वो तेरी नादानियो पे 
क्यूँ ना खीजेगा..
पर नही,
तू तो भगवान से भी 
बड़ा है..
तेरी भूल भरी फॅक्टरी मे 
भगवान बेचारा 
यू ही पड़ा है…
तेरे निकालने पे 
अलमारी से बाहर आता है..
तू घंटी बजता है 
तो वो जाग जाता है..
तेरी पूजा अर्चना के पश्‍चात 
बेचारा..
फिर अलमारी मे समा जाता है..
कैसी विडंबना है ये उसकी..
जो सारी दुनिया को चलता है..
तू उससे ही अलमारी मे सुला, 
खुद सो जाता है..,
फिर भी..भगवान मंद मंद मुस्काता है..
तेरी हर छोटी बड़ी ग़लती को 
भूल जाता है..
तुझे नित नई राह दिखता है..
तू फिर भी ना देख पाए तो 
ठोकर से सिखाता है..
यदि ना समझे तो 
तेरे कर्म पे तुझे छोड़ जाता है..
और तू ये सब ना समझ….
अपनी अकल्मंदी पे 
मन ही मंन इतरता है…
तभी तो बार बार मेरा मन 
यही गाता है…
देख तेरी चतुराई…भगवान
को भी हँसी आई.. 

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