रोबोट सा चलता इंसान
रोबोट सा चलता इंसान
मूल्यो को खोता इंसान
कितना संवेदनहीन
होता जा रहा है ये
भावनाओ को ही
भूलता जा रहा है ये
भावनाओ का मूल्य
अब कुछ नही रहा
बस जो दिमाग़ रूपी
आइ सी कहा
वो ही किया
दिल की चिप को
कर दिया है इनॅक्टिव
बस दिमाग़ से फ़ायदे
की करते है प्रॅक्टीस
माँ, बाप, भाई, बहन
ना जाने कहाँ गये?
शायद दुनिया की भीड़ मे
कही गुम हो गये
जब ज़ज्बात की
आइ सी होगी फ्रेश
तभी सारे रिश्ते
होंगे रेफ्रेश
वरना तो इस
रोबोट मे
इंसान मिलना
मुश्किल है
इंसान अगर
मिल भी जाए तो
फीलिंग्स मिलना
नामुमकिन है
चलो फिर से सोए
इंसान को जगाए
भूले रिश्तो को
ताज़ा कर आए
तभी होगा
सच्चा पुरुषार्थ
जब इंसान सच मे
देख पाए यथार्थ
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