Tuesday, November 22, 2011

उसने कहा, स्‍त्री ! तुम्‍हारी आंखों में मदिरा है...तुम मुस्‍कुरा दीं। 

उसने कहा, स्‍त्री ! तुम्‍हारे चलने में नागिन का बोध होता है...तुम्‍हें नाज़ 

हुआ खुद पर....। 
अब वह कहता है तुम एक नशीली आदत और ज़हरीली नागिन के सिवा कुछ नहीं....। 
(ओह..इसका यह भी तो अर्थ होता है)
.....तुम्‍हें पहले सोचना था स्‍त्री...उसकी तारीफ पर सहमति देने से पहले....




तुझे हाँ कहने से पहले विचारना था
सौ बार मॅन मे सोचना था
क्यूंकी पुरुष कभी
सही नही सोचते
हमेशा कोई ना कोई
अर्थ छुपा होता हैं 
उनके सवालो मे, जवाबो मे 
और प्रायः तारीफो मे भी
ए स्त्री ज़रा संभल, धीरे से पाव पसार
वरना धोखा ही धोखा मिलेगा
और कुछ नही....ये पुरुषो का रचाया समाज हैं
इसमे तेरी कोई जगह नही..

0 Comments:

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home