गूँथ रहा रिश्तो की माला
मोती बिखर बिखर हैं जाता
कैसी शिकन हैं माथे पे
क्यूँ बल दिख जाता
ऐसा कौन सा अनुभव हैं
जो चोट तुम्हे दे जाता हैं
बात जब रिश्तो की आती
मन तेरा अकुलाता
कड़वे हुए हैं सारे रिश्ते
मन हैं धोखा ख़ाता
लेकिन जाने क्या हैं ऐसा जग मे
मॅन बार बार वही हैं जाता
खाली हाथ हैं वापस आता
मन ही मन पछताता
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