पन्ने हो या जिंदगी
पन्ने हो या जिंदगी
प्यार से पिरोना पड़ता हैं
पिरोने के बाद खुद ही उसे
पढ़ना भी पड़ता हैं
अब इबारत उसकी सुख हो या दुख
साथ लेकर चलना पड़ता हैं
सूज जाए जो उंगलियाँ
गरम पानी का सेक भी
देना पड़ता हैं............
फिर जब इकट्ठा हो जाते हैं
सुख दुख के ढेर सारे पन्ने
तो मोटी सुई से सिल्ना भी पड़ता हैं
पूरी हो जाए जो किताब तो
संत कबीर की तरह
ईश्वर के आगे ज्यूँ का त्यु
रख भी देना पड़ता हैं
प्यार से पिरोना पड़ता हैं
पिरोने के बाद खुद ही उसे
पढ़ना भी पड़ता हैं
अब इबारत उसकी सुख हो या दुख
साथ लेकर चलना पड़ता हैं
सूज जाए जो उंगलियाँ
गरम पानी का सेक भी
देना पड़ता हैं............
फिर जब इकट्ठा हो जाते हैं
सुख दुख के ढेर सारे पन्ने
तो मोटी सुई से सिल्ना भी पड़ता हैं
पूरी हो जाए जो किताब तो
संत कबीर की तरह
ईश्वर के आगे ज्यूँ का त्यु
रख भी देना पड़ता हैं
8 Comments:
वाह ...शब्द को शब्दों में पिरो दिया हैं आपने ...बहुत खूब
बहुत सही विवेचना प्रस्तुत की है आपने!
बहुत खूब!
सादर
बहुत सुंदर भाव संजोये है
abhaar Anju ji..
Shukriya Shastri ji...
thanks Yash ji....
tahe dil se abhaar..Sunil ji..
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