तुमने कुछ कहा नही ...............उसने कुछ सुना नहीं
कितना पाक दिल था ...................तुम्हारा
कह सकते थे बहुत कुछ
लेकिन कभी कहा नहीं
समेट सकते थे उसे ...............अपनी बाहों मे
लेकिन उसे छुआ नहीं
दोस्ती थी जन्मो जन्मो की
लेकिन उसके घर गये नहीं
पा सकते थे उसे ..............अपना नसीब बनाकर
लेकिन कभी कुछ कहा नहीं
जज्बातो को रखा अपने भीतर ..........संभाल कर
दिया कभी उन्हे हवा नहीं
अजीब प्यार था तुम्हारा
तुमने कुछ कहा नही
उसने कुछ सुना नहीं
कह सकते थे बहुत कुछ
लेकिन कभी कहा नहीं
समेट सकते थे उसे ...............अपनी बाहों मे
लेकिन उसे छुआ नहीं
दोस्ती थी जन्मो जन्मो की
लेकिन उसके घर गये नहीं
पा सकते थे उसे ..............अपना नसीब बनाकर
लेकिन कभी कुछ कहा नहीं
जज्बातो को रखा अपने भीतर ..........संभाल कर
दिया कभी उन्हे हवा नहीं
अजीब प्यार था तुम्हारा
तुमने कुछ कहा नही
उसने कुछ सुना नहीं
3 Comments:
yeh kavita to ruh ko chuti hi hai aur jo tumne apne blog mein itna kuch dala hai usko main roz padhne ki koshish karoonga tum likhti baut accha ho aur aise hi likhkar jo zindgi ke satya hain usse awagat karte raho
thanks Birendra ji....ye to ap sabka pyar hain jo likhne ko prerit karta rehta hain...ap ise like karte hain to hausala aur bhi badh jata hain..
कहीं विरह की व्यथा है तो कही मिलन की अभिलाषा , अपर्णा खरे की रचनाएं मन को उद्वेलित करती है , इनका ब्लॉग साहित्य क एक धरोहर के रूप में लगता है . औरत को लेकर लिखी गयी कविता स्त्री होकर सवाल ......वास्तव में एक यक्ष प्रशन है ... जवाब तलाशने का प्रयत्न भर किया जाय तो अपर्णा जी की कोशिश सफल हो जाए . पन्ने हो या जिंदगी एक दार्शनिक के रूप में अपर्णा जी को सामने रखता है तेरा प्यार मुझे सताएगा .... प्रेम की हद का आभास दिलाता है
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