तुम्हारा प्रेम झर उठता हैं
जुदाई मे विरह का संवाद
तुम ही सुन पाते हो
मैं तो निर्झर झरने जैसी
बह जाती हूँ.....तुम्हारे साथ
नही रोक पाती अपने आँसुओ को
बादल बन सब घूमड़ कर
चेहरे पे आ टिकता हैं
लोग चेहरे देख सब तय कर
लिया करते हैं...........
कैसे जीती हूँ तुम बिन
विरहन तक कह देते हैं
तुम्हारे साथ जिया एक
लम्हा प्रेम का............
जिसमे गुम हैं मेरा वज़ूद
आँखो के सामने आ
मचलता हैं
तब रोता नही हैं इश्क़
तुम्हारा प्रेम झर उठता हैं
11 Comments:
बेहतरीन प्रस्तुति ।
सादर
----
जो मेरा मन कहे पर आपका स्वागत है
bahut badhiya ji
मैं तो निर्झर झरने जैसी
बह जाती हूँ.....तुम्हारे साथ
मन के बोल जब फूटते है तो फिर रोके नहीं रुकते. आपका तो निश्छल प्रेम है. इस प्रेम को निर्झर बह जाने दो. इसी दरया से वह लौट आएगा. यह निर्झर साथ लेकर के वही संगम बनाएगा. बहुत ही भाव मई प्रस्तुति.
सुंदर , बेहतरीन रचना है
thanks Yash ji..
thanks Uncle..
tahe dil se abhaar Neeta ji..
sach kaha apne hame poora vishvass hain..wo kahi nahi jayega..
bahut bahut abhaar Reena ji...
अपर्णा जी सुन्दर प्रस्तुति
जुदाई मे विरह का संवाद
तुम ही सुन पाते हो
मैं तो निर्झर झरने जैसी
बह जाती हूँ.....तुम्हारे साथ
नही रोक पाती अपने आँसुओ को
बादल बन सब घूमड़ कर
चेहरे पे आ टिकता हैं
लोग चेहरे देख सब तय कर
लिया करते हैं...........
thanks Rajendra ji apka bahut bahut abhaar
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home