जाड़ा बहुत भाता हैं
चाय की चुस्की और रज़ाई
और उसपे तुम कुछ कुछ अलसाई
मेरा भी बस चुपचाप तुम्हे देखे जाना
मन को रोमांचित कर जाता हैं
सच मे जाड़ा बहुत भाता हैं
घड़ी भागती तेज़ रफ़्तार से
तुमको भी हैं ऑफीस जाना
छोटा बच्चा रो रो कर जागता
मॅन बहुत घबराता हैं
सच मानो फिर भी
जाड़ा बहुत भाता हैं
सारे काम रुक से जाते हैं
जब सर्दी मे हाथ ठंडे हो जाते
ऐसे मे तुम्हारा नरम नाज़ुक हाथ
बहुत याद आता हैं.....
सच कहूँ जानम जाड़ा बहुत भाता हैं
7 Comments:
ये जाडा बहुत भाता है , इतनी ठंड मे ठंड का मीठा एहसास करा गयी आपकी रचना
बहुत सुन्दर भावप्रणव अभिव्यक्ति!
thanks Praveena Ji....apko meri rachna pasand ayi...
thanks Uncle....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
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आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
सकारात्मक दृष्टि, जग भला
वाह बहूत सुंदर लाजवाब रचना है
संस्कार कविता संग्रह में आपका स्वागत है ..
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