मौसम के ढंग निराले हैं
चाचा ने कह डाले हैं
भुवन भास्कर जब हैं आते
मेरे चाचू परेशन हो जाते
ओढ़ रज़ाई सो जाते हैं
जाड़ा बहुत सतावे हैं
होली के आते ही चाचा
हो जाते मतवाले हैं
चाची संग खेले होली
बच्चो को डाट पिलावे हैं
मौसम के रंग निराले हैं
सावन का महीना
चाचा जी को बीमार कर देता हैं
चाची चली जाती हैं मायके
चाचा का ख़याल कोई ना रखता हैं
तब चाचा जी ने नये खेल निकाले हैं
ताश और शतरंज से
अपना दिल बहला डाले हैं
मौसम के हैं ढंग निराले।।
चाचा ने कह डाले हैं
भुवन भास्कर जब हैं आते
मेरे चाचू परेशन हो जाते
ओढ़ रज़ाई सो जाते हैं
जाड़ा बहुत सतावे हैं
होली के आते ही चाचा
हो जाते मतवाले हैं
चाची संग खेले होली
बच्चो को डाट पिलावे हैं
मौसम के रंग निराले हैं
सावन का महीना
चाचा जी को बीमार कर देता हैं
चाची चली जाती हैं मायके
चाचा का ख़याल कोई ना रखता हैं
तब चाचा जी ने नये खेल निकाले हैं
ताश और शतरंज से
अपना दिल बहला डाले हैं
मौसम के हैं ढंग निराले।।
4 Comments:
बहुत ही बढ़िया।
सादर
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जो मेरा मन कहे पर आपका स्वागत है
dhanyawaad Yashwant ji...
bahut sundar rachana hai
thanks Reena Ji..
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