तुम जिंदगी से बतियाती रही
मैने तुमसे कहा
चलो बाज़ार चलते हैं
तुम बच्चो का रोना ले बैठी
मैने तुमसे कहा काली घटाए छा गई हैं
तुम छत पे कपड़े लेने जा पहुची
मैने कहा इस बार होली पे नई सारी ले लेना
तुम बोली बच्चो के कपड़े ले आए...
मैने कहा चलो साथ मे कोई गीत गाये
तुमने कहा चलो मुन्ने को सुला आए
मैं करता रहा इश्क़ की बाते
तुम जिंदगी से बतियाती रही
2 Comments:
सबकी अपनी जमीन और अपना आसमान होता है।
गृहिणी का काम जिन्दगी के बहुत करीब होता है।
सुन्दर कविता।
thanks siddharth ji...sach kaha apne..
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