मेरी भी आदत सी हो गई हैं
मैं कभी नही सीख पाउगा........खाली पन्नो को पढ़ना
क्या करूँ खाली पन्नो मे
तुम नज़र आती हो
क्या करूँ तुम्हारी आवाज़
हमे बार बार बुलाती हैं
और तुम हो की तुम्हे लगता हैं हमे
तुम्हारी आवाज़ ही नही आती हैं
तुम्हारी भटकती आँखो मे
मैं खुद को ही पाता हूँ और
तुम कहती हो तुम्हे समझ नही पाता हूँ..
तुम्हारी हाथ की पाँचो उंगलियो से
बाँधी गई ढीली मुट्ठी हमे ये बताती हैं कि
तुम हमारे साथ हाथ मे हाथ डाल कर
चलना चाहती हो..रहना चाहती हो हमारे साथ हमेशा हमेशा
पता हैं तुम्हारी सधी उड़ान भी
मुझे देखते ही ना जाने कैसे कपकपा जाती हैं....और तो और
कभी कभी तो हमरे लिए प्यार से बनाई गई
चाय की प्याली भी तुम्हारे हाथ से छूट जाती हैं..
मैं ना ...मैं ना ...तुम्हारे ताप को पकड़ पाता हूँ,
आँखो मे छिपे लाल डोरे..समझ जाता हूँ
लेकिन क्या करू ................यार ....मेरी भी न
आदत सी हो गई हैं, तुम्हे छेड़ने की..
तुमसे लड़ने की...तुमपे अपना हक़ रखने की....
क्या करूँ खाली पन्नो मे
तुम नज़र आती हो
क्या करूँ तुम्हारी आवाज़
हमे बार बार बुलाती हैं
और तुम हो की तुम्हे लगता हैं हमे
तुम्हारी आवाज़ ही नही आती हैं
तुम्हारी भटकती आँखो मे
मैं खुद को ही पाता हूँ और
तुम कहती हो तुम्हे समझ नही पाता हूँ..
तुम्हारी हाथ की पाँचो उंगलियो से
बाँधी गई ढीली मुट्ठी हमे ये बताती हैं कि
तुम हमारे साथ हाथ मे हाथ डाल कर
चलना चाहती हो..रहना चाहती हो हमारे साथ हमेशा हमेशा
पता हैं तुम्हारी सधी उड़ान भी
मुझे देखते ही ना जाने कैसे कपकपा जाती हैं....और तो और
कभी कभी तो हमरे लिए प्यार से बनाई गई
चाय की प्याली भी तुम्हारे हाथ से छूट जाती हैं..
मैं ना ...मैं ना ...तुम्हारे ताप को पकड़ पाता हूँ,
आँखो मे छिपे लाल डोरे..समझ जाता हूँ
लेकिन क्या करू ................यार ....मेरी भी न
आदत सी हो गई हैं, तुम्हे छेड़ने की..
तुमसे लड़ने की...तुमपे अपना हक़ रखने की....
2 Comments:
एक साथ कई भावों को संजोये बहुत ही सुंदर रचना
thanks Sanjay ji..
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