Sunday, April 15, 2012

इंद्र धनुष

माना इंद्र धनुष मे रंग मेरे हैं
गुलाबी ,लाल ,सुनहरा ,सिंदूरी ,रक्तिम
जो मेरी आभा को दम्काते हैं
मेरे चेहरे पे भरे किसने हैं
इंद्र धनुष का अर्ध चंद्राकार रूप
मेरे प्यार के घेरे जैसा हैं
जो तुमने डाला हैं अपनी बाहों से
मेरे गले मे..........................
प्रीत भी तुम्हारी हैं, खुश्बू भी तुम्हारी हैं
जो तुमने हम मे भर डाली हैं
वरना कहाँ थी ताक़त हमारे भीतर
दुनिया से लड़ने की,
तुम्हारे संग चलने की...
तुम्हारा अपनापन ही हैं जो मुझे
यहाँ तक खीच लाया हैं.........
तुम्हारे एहसास ने ही हमारा
हमसे मिलन कराया हैं
और तुम हो कि तमगा
मुझे दिए जाते हो....
जिंदा रहने का कारण भी
हमे ही बताते हो...कितना चाहते हो मुझे
मेरी जान से भी ज़्यादा.....
नही नही अपनी जान से भी ज़्यादा

2 Comments:

At April 15, 2012 at 5:14 AM , Blogger संजय भास्‍कर said...

बहुत ही सुन्दर भावों को अपने में समेटे शानदार कविता.

 
At April 15, 2012 at 10:55 AM , Blogger अपर्णा खरे said...

shukriya Sanjay ji..

 

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