Tuesday, December 18, 2012

ज़्यादा अपनापन..रुला देता हैं..

फलक से लाएँगे तुमको..चाँद की डोली मे बिठा कर...
तुम हो लाजवाब...मेरी जिंदगी .....मे ....मेरे प्रियवर

शरम आती नही इन दरिंदो को..
लूट लेते हैं घर मे ही घर की इज़्ज़त को..

माँ की भी झुक गई होंगी आँखे..
जब समाचार उसने ये पाया होगा

जब से उसने कहा मुझे पाना एक ख्वाब है´
इन पॅल्को ने कम्बख़्त जागना भुला दिया

उम्र भर बिखरे रहे तुमहरे लिए..
तुमने कुछ ना पूछा...मुझसे..समेटा और...बहा दिया

कितना गहरा नाता हैं..पीते ही छलक जाता हैं..
चॅड जाता हैं नशा..छलकाने से..पीने मे क्या मज़ा आता हैं..

सच  कहा ज़्यादा अपनापन..रुला देता हैं..
आँखो मे आँसू ला देता हैं..
झर उठता हैं प्यार जब उसका...

कहा था मीरा ने भी किसी संत से यही..
मिलना हैं जो मुझसे अकेले मे तो मंदिर मे आ यही..


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