ये मुनाफ़े की तिजारत है, चलो इश्क करें.कहीं पढ़ा तो .................ख़याल आया..
इश्क़ मे भी मुनाफ़ा...ये कैसी बात हुई..
मैने तो सुना हैं इश्क़ हमेशा
हार कर खुश होता हैं..
देकर प्रसन्न होता हैं...
यहाँ सब उल्टा क्यूँ होता
नज़र आ रहा हैं....
क्या दुनिया बदल गई..
या इंसान की सोच बदल गई...
नही रहा सब कुछ पहले जैसा..
ना इंसान..ना इंसानियत.......
लेकिन बेचारे इश्क़ को क्या हुआ..
उसकी फसल को कौन सा रोग लगा...
जो एकदम से घाटा और मुनाफ़ा
याद आने लगा.
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