कूड़ेदान
देखो झल्लाहट मे तुमने मुझे
पूरा कूड़ेदान बना डाला हैं..
जब जी चाहा, जो जी मे आया...
उडेल दिया मुह पर आकर
ये कोई बात नही होती,
मेरा भी जी जलता हैं..
मुझमे भी आग बसती हैं..
लेकिन मैने समुद्र की बॅडनावल अग्नि की तरह
खुद को समेट कर रखा हैं
कभी नही भूलती अपनी मर्यादा...
नही तोड़ती अपना बाँध...
नही पार करती अपने तट को
क्यूंकी मुझे पता हैं..
अपनो से ही होती हैं ग़लतिया..
जो हमे प्यार करते हैं..
वो ही कर पाते हैं प्रगट अपना रोष
अपना गुस्सा..आज ये पक्का हो गया..
बहुत चाहते हो तुम मुझे
अपनी जान से भी ज़्यादा
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