प्यार का पहला कदम...
सच कहु तो बेचैन नही हूँ..मैं
लेकिन क्या करू बुरे बुरे ख़याल जो आते हैं दिल मे..
आशंकित रहता हैं मन ..कहीं बिछड़ ना जाए..
बस यही डर जीने नही देता खुल कर..
सपने भी आते हैं तो ऐसे ही..
जैसे कोई तुमसे मुझे खीच कर अलग कर रहा हो..
बताओ..ऐसे मे प्रेम कहाँ और कैसे टिक पाएगा..
तुम्हे लगता हैं मैं सवाल बहुत करती हूँ..
नही खोने के डर से ही उभरते हैं नये सवाल..
क्या करू तुम्हे खोकर जिंदा नही रह पौँगी ना..
यही सोच कर काप जाता हैं दिल..
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